आचार्य शिवप्रसाद ममगांई
गजाननाय पूर्णाय साङ्ख्यरूपमयायते ।
विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः।।
गजानन ज्ञान के भण्डार आप निराकार रूप में विद्यमान आपको नमस्कार करता हूँ । श्री गणेश जी महाराज का प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ में पूजन बंधन एवं ध्यान करना अपना परम कर्तव्य समझता है हमारा आस्तिक भारतीय कोई ऐसा कार्य नहीं जो गणपति पूजन के बिना आरंभ किया जाता हो इस अटल नियम पालन की प्रणाली के प्रताप से संस्कृत साहित्य मैं तो श्रीगणेश शब्द की शक्ति ही आरम्भार्थ में अरुढ़ हो गई है। हिंदी भाषा में भी न केवल गणेश पूजन में निष्ठा रखने वाले आस्तिक सजन ही नहीं अपितु तुन्दील पेट और हाथी की नाक कहकर कहकहे लगाने वाले अपटूडेट महाशय भी श्री गणेश पद को प्रारम्भकर्ता सूचक मुहावरा स्वीकार करते हैं और बड़े धड़ेले के साथ किसी भी आंदोलन का प्रशसात्मक बखान करते हुए यही उच्चरते हैं ,कि जब से इस आंदोलन का श्रीगणेश हुआ है तब से हिंदु जाती में पुनः जीवन आगया है। इत्यादि हाथी का मस्तिष्क अधिक मर्मस्थल समझकर व्यर्थ और विवेकपूर्ण अनावश्यक संघर्ष मैं प्रवृत्त ना होने की शिक्षा एक मात्र हाथी के मस्तक से मिल सकती है ,सिर बड़ा यानी सोचने समझने की शक्ति बहुत बड़ी होनी चाहिए, कान बड़े एक से सुनो दूसरे से बाहर निकालो नाक लंबी जीवन में लज्जा बहुत लंबी होनी चाहिए प्रतिष्ठा बड़ी होनी चाहिए याह नाक दर्शाती है ,पेट बड़ा हर बात जिसको पचे उसका पेड़ बड़ा जिसको बात नहीं पचती उसका पेट छोटा बाहन छोटा जहां जाओ खड़ा कर दो या चूहा तर्क का प्रतीक है जो बुद्धिमान लोग होते हैं वह तर्क के ऊपर सवार होते हैं कान बड़े कच्चे कान वाले व्यक्ति हमेशा धोखा खाता है इसलिए कान बड़ी रखो किसी समय मां पार्वती स्नान कर रही थी रोकने पर द्वारपाल भूत नदीगण को झिड़क कर सदाशिव भगवान अंदर जा पहुंचे पार्वती मैया ने सोचा मेरा भी एक द्वारपाल होना चाहिए अपने शरीर के मल से गणेश की उत्पत्ति कर प्राण प्रतिष्ठा करने पर द्वारपाल रख दिया स्वयं भगवान अंदर जाने लगे गणेश जी ने रोक दिया शिव जी नें सभी गुणों से लड़ने को कहा स्वयं लड़े शनी की नजर गणेश जी के सिर पर पड़ी और सिर काट दिया वह दक्षिण दिशा में भेज दिया जो कि सिरफल के पेड़ के रूप में उत्पन्न हुआ गणेश जी स्वयं नीचे गिर गए पार्वती का गुस्सा देखकर शंकर भगवान ने उत्तर दिशा की ओर गणों को भेजा पीठ मोड़कर जो माता बच्चे के साथ सो रखी हो उसके बच्चे के सिर को काट के ले आओ ऐसी माता केवल हथिनी होती है जो अपने बच्चे की तरफ पीठ मोड़कर सोती है उसका सिर काट कर गणेश जी के कलेवर ( धड़पर) पर जोड़ा और सभी देवों से प्रथम पूजन का वचन दिलवाया देवों ने कहा गणपति पूजन के बिना हमारी पूजा सफल नहीं होगी इसलिए प्रथम पूजक गणपति जी हैं भादो की चौथ के दिन गणपति जी का जन्मदिन है सिंदूर द्रुवा मिष्ठान नैवेद्य से गणपति जी प्रसन्न होते हैं।।
ज्योतिष पीठ व्यास पद से अलंकृत
