जब जुनून सच्चा हो, तो कोई भी बाधा रास्ते की दीवार नहीं बन सकती। कुछ लोग अपने कर्तव्यों को सबसे ऊपर रखते हैं, तो कुछ अपनी जन्मभूमि के प्रति समर्पण को सर्वोपरि मानते हैं। उत्तराखंड में चल रहे 38वें नेशनल गेम्स के दौरान एक ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी सामने आई, जिसने सभी का दिल जीत लिया। हम बात कर रहे हैं नगर निगम श्रीनगर के नवनिर्वाचित पार्षद और नेटबॉल खिलाड़ी सुमित बिष्ट की, जिनके लिए 7 फरवरी सिर्फ एक तारीख नहीं थी, बल्कि जीवन का सबसे अहम दिन था।
राजनीति और खेल के बीच बड़ा फैसला
7 फरवरी को एक तरफ सुमित को पार्षद पद की शपथ लेनी थी, वहीं दूसरी ओरदेहरादून में नेशनल गेम्स में उत्तराखंड के लिए मेडल जीतने का सुनहरा मौका था। चुनाव प्रचार से लेकर जीत तक का सफर आसान नहीं था। महीनों की मेहनत, दिन-रात की भागदौड़ और जनता का विश्वास जीतकर सुमित पार्षद बने। जब परिणाम घोषित हुए और उनके नाम के आगे ‘निर्वाचित’ लिखा गया, तो यह उनके संघर्ष की सबसे बड़ी जीत थी। लेकिन इस जीत के तुरंत बाद एक और बड़ी जिम्मेदारी सुमित के कंधों पर आ गई। पार्षद पद की शपथ लेना महत्वपूर्ण था, लेकिन उसी दिन उनका नेटबॉल का अहम मुकाबला कर्नाटक के खिलाफ था।
शपथ समारोह में नहीं, खेल के मैदान में दिखा जुनून
जब श्रीनगर में पार्षदों का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, तब सुमित बिष्ट हरादून में नेटबॉल के मैदान में संघर्ष कर रहे थे।** यह संघर्ष सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि **पूरे उत्तराखंड के लिए था। अपनी बेहतरीन खेल प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए सुमित ने उत्तराखंड की टीम को जीत दिलाई और प्रदेश के लिए गोल्ड मेडल लेकर आए।
वार्ड के लिए मेरे पास 5 साल हैं : सुमित
सुमित बिष्ट मानते हैं कि खेल और समाजसेवा दोनों ही उनके लिए समान रूप से जरूरी हैं। उन्होंने पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन जब राज्य के लिए खेलने का मौका आया, तो उन्होंने अपने कर्तव्य से पहले अपने प्रदेश को चुना। उनका मानना है कि “वार्ड के लिए मेरे पास पूरे पांच साल हैं, लेकिन राज्य के लिए खेलने का मौका बार-बार नहीं आता।
सुमित बने पूरे राज्य के लिए प्रेरणा
अपनी दोनों जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाते हुए, सुमित अब केवल अपने वार्ड ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए एक मिसाल बन गए हैं। उनका यह फैसला हर युवा को यह सिखाता है कि कर्तव्य और जुनून में संतुलन बनाना ही असली जीत है।