सरोवर नगरी नैनीताल, एक खूबसूरत पहाड़ी जिसकी हर गली हर घर हर नुक्कड़ की एक कहानी है. पर नैनीताल की कई कहानियां वक्त की धूल में धुंधली पड़ गयी है. कई कहानियां इतिहास के पन्नों में दफ्न हो गई. आज हम आपको नैनीताल के एक घर की ऐसी ही कहानी बताने वाले हैं जो वक्त के साथ भुला दी गई.
रेवेन्सवुड शांत और खूबसूरत बौद्ध मठ के रुप में जाना जाता है किसी जमाने में खानपुर एस्टेट परिवार का ग्रीष्मकालीन विश्राम हुआ करता था. खानपुर एस्टेट परिवार बुलंदशहर के तुलकदार थे. इनके पास मेरठ, मुरादाबाद, बुलंदशहर और बदायूं के कई पर्गनों में भी हिस्सेदारी थी.जब अंग्रेज भारत आए और अपनी कूटनीतियों से उन्होंने भारत में अपना शासन स्थापित कर लिया. जिसके बाद भारत में उनके खिलाफ आंदोलन होने लगे और सबसे पहला आंदोलन हुआ साल 1857 में इस क्रांति में खानपुर एस्टेट परिवार ने भी अपनी जान की बाजी लगाई. अब्दुल लतीफ खान, उनके चाचा अज़ीम खान, और उनके बेटे हाजी मुनीर खान ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और शहीद हो गए. 1857 के विद्रोह को कुचलने के बाद. अंग्रेजों ने विद्रोहियों की संपत्तियां जब्त करनी शुरू कर दी और यहीं से रेवेन्सवुड की तकदीर भी बदल गई.
खानपुर परिवार का ये खूबसूरत ग्रीष्मकालीन निवास अंग्रेजों के कब्जे में चला गया. बता दें की मूसा मुनीर खान जो खानपुर परिवार के वंशज हैं. उन्होंने इस पर रिसर्ज की और रेवेन्सवुड की इस अनकही दास्तान को दुनिया के सामने लाए. अंग्रेजों के कब्जे में जाने के बाद इसके मालिक बने major J.H.S. Murray जो नैनीताल में अपर बैंक ऑफ इंडिया के मालिक और ऐजेंट थे. इसके बाद इसे फेमस जेसीटी फगवाड़ा ने खरीदा जो textiles and filaments के manufacturer थे. उन्होंने इसका नाम बदल कर सुख निवास रख दिया. इसके बाद अंत में ये संपत्ति भूटान के तीसरे राजा Jigme Dorji Wangchuk’s के हाथों में आ गई और इसके बाद वो यहां रहने लगे साथ ही उन्होंने एक बौद्ध मठ में भी परिवर्तित कर दिया. आज रेवेन्सवुड, नैनीताल के इतिहास और अध्यात्म का संगम है.