क्या आप जानते हैं की साल 2004 के आम चुनाव में कुछ ऐसा हुआ था जिस कारण बसपा पार्टी की काफी किरकिरी हुई थी. उत्तराखंड के अल्मोड़ा में साल 2004 के आम चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी से बच्ची सिंह रावत उम्मीदवार बने, कांग्रेस से हरीश रावत ने अपनी पत्नी रेणुका रावत को चुनावी मैदान में उतारा वहीं बसपा से श्याम लाल प्रत्याशी बने। बसपा पहाड़ों में दलित कार्ड खेल रही थी और इसमें उसको काफी सफलता भी हासिल हो रही थी। बसपा ने अल्मोड़ा में सामान्य सीट होने के बाद भी दलित वर्ग के प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा था बसपा जनती थी की पहाड़ों के दलित वोट आमतौर पर कांग्रेस की झोली में ही जाते हैं इस लिए बसपा अपनी पूरी रणनीति दलितों को लेकर तैयार कर चुकी थी।
सभा में ही मौजूद नहीं थे प्रत्याशी श्याम लाल
अब बसपा से मायावती अपने उम्मीदवार का प्रचार करने बागेश्वर पहुंची. जहां के डिग्री कॉलेज के मैदान में मायावती के लिए खूब ताम-झाम किए गए। बसपा के पदाधिकारियों ने सभा में भीड़ तो जुटा ली पर अब तक उनके उम्मीदवार श्याम लाल ही सभा में मौजूद नहीं थे। इधर मायावती भी बागेश्वर पहुंच चुकी थी। उधर मंच से बार बार ये कहा जा रहा था की पार्टी के प्रत्याशी अल्मोड़ा के दूरस्थ इलाके में प्रचार करने गए हैं जिस वजह से वो बागेश्वर नहीं पहुंच सके। पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच श्याम लाल के नाम वापसी को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी, आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सभा खत्म होने तक मायावती को भी उनके उम्मीदवार की नाम वापसी कि भनक तक नहीं लगने दी गई। सभा खत्म होने के बाद कार्यकर्ताओं को पता चला की श्याम लाल ने चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया है । इस राजनीतिक घटना के बाद बसपा को बेहद किरकिरी का सामना करना पड़ा था।
इस बार किस पर भरोसा
आपको बता दें की लोकसभा चुनाव में बसपा सालों से अपने उम्मीदवार खड़ी करती आई है लेकिन आज तक बसपा चुनाव में अपना परचम नहीं लहरा पाई। अब एक तरफ जहां बसपा के प्रदेश अध्यक्ष साल 2014 के लोकसभा चुनावों में 25 हजार मतों पर सिमट कर रह गए थे वहीं दूसरी तरफ अब बसपा ने अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है आपको बता दें की पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मेवालाल गौतम द्वारा जारी सूची के मुताबिक टिहरी गढ़वाल से नेम चंद, गढ़वाल सीट से धीर सिंह बिष्ट, अल्मोड़ा से नारायण राम, नैनीताल- ऊधनसिंह नगर से अख्तर अली और हरिद्वार से जमील अहमद पे बसपा ने विश्वास जताया है। अब ये देखना दिलचस्प होगा की क्या 25 सालों बाद बसपा अपने मतों की संख्या में जरा भी इजाफा कर पाएगी।