शहीद दिवस 2023: जानें हस्ते हस्ते फांसी की सजा को गले लगाने वाले तीन वीर सपूतों की कहानी

राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है… मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है… ज़िन्दगी तो अपने दम पर जी जाती है… दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते है। इन शब्दों को हकीकत में बदलने वाले तीन अमर शहीदों ने आज ही के दिन हस्ते हस्ते फांसी की सजा को गले लगा लिया था और ये तीन वीर पुरुष थे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव। इनकी शहादत के किस्से सुनके आज भी पूरे भारतवासियों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

जानते हैं तीन वीर सपूतों के बारे में

भगत सिंह – भारत के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने वाले भगत सिंह का जनम 28 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायलपुर में हुआ था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर इन्होने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बड़े साहस और उग्रता के साथ आज़ादी की लड़ाई लड़ी। भगत सिंह मार्क्स के विचारों से काफी प्रभावित थे और इन्ही का नारा था इंकलाब ज़िंदाबाद, ये नारा सुनते ही सारे भारतवासियों के खून में उबाल आज भी आ जाता है।

सुखदेव– सुखदेव भगत सिंह के ही गांव पंजाब के लायलपुर में 15 मई 1907 को जन्मे थे और भगत सिंह के काफी अच्छे मित्र भी थे। सांडर्स हत्याकांड में भगतसिंह और राजगुरु का सांथ देने वाले सुखदेव ही थे।

राजगुरु – 24 अगस्त, 1908 को पुणे के खेड़ा में जन्मे राजगुरु गरम दल का काफी अहम हिस्सा थे। राजगुरु बाल गंगाधर तिलक के विचारों से काफी प्रभावित थे और शिवाजी की छापामार शैली के मुरीद भी।

क्यों सुनाई गयी थी सजा

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव गरम दल का हिस्सा थे। ब्रिटिश राज के खिलाफ अपना आक्रोश दिखाते हुए इन तीनो वीर सपूतों ने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट बिलज् के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेके थे। उसके बाद इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और साथ ही फांसी की सजा भी सुना दी गयी। 23 मार्च के दिन ही ये तीनो भारत माता के वीर सपूत हस्ते हस्ते फांसी के फंदे में झूल गए थे। उस दौरान तीनों के ही चेहरों पर ज़रा भी शिकन नहीं थी।