अगर आप केदारनाथ की यात्रा पर आ रहे हैं तो आपको रुद्रप्रयाग के इन चमत्कारी मंदिरों में भी जरूर जाना चाहिए क्योंकि इनके बिना आपकी ट्रीप लगभग अधूरी है इस पोस्ट में हम आपको केदारनाथ के कुछ बेहद खास मंदिरों के बारे में बताने वाले हैं जो आपकी यात्रा को और रोचक बनाएंगे।
काशी विश्वनाथ मंदिर
इस लिस्ट में सबसे पहले हम आपको उत्तराखंड के काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में बताते हैं। जहां माता पार्वती अर्ध नारीश्वर के रुप में विराजमान हैं। रुद्रप्रयाग का काशी विश्वनाथ मंदिर केदारधाम के रास्ते में ही है इसे केदार यात्रा का मुख्य पड़ाव भी माना जाता है। कहते हैं की जब महाभारत युद्ध के बाद पांडव शिव के दर्शन करने केदार की तरफ आ रहे थे तो इसी जगह से शिव अंतर्ध्यान हो गए थे तब से इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। आपको ये जानकर हैरानी होगी की इसी जगह पर माता पार्वती ने पांडवों को अर्धनारीश्वर के रूप में दर्शन दिए थे और तभी से यहां मां पार्वती अर्धनारीश्वर के रुप में विराजमान हैं।

कोटेश्वर मंदिर
अब आपको लेकर चलते हैं उस मंदिर की ओर जहां पूजा करने मात्र से तेज बुद्धि का वरदान मिलता है। अलकनंदा नदी की गोद में बसे शहर रुद्रप्रयाग से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटेश्वर गुफा ये वही गुफा है जहां शिव भस्मासुर से छीपने के लिए गए थे। मान्यता है की जो कोई भी यहां सात दिन और सात रातों तक भगवान शंकर की उपासना करता है उसी बुद्धि बृहस्पति की तरह तेज हो जाती है और भगवान शंकर उसे ज्ञान में वृद्धी भी करते हैं।
इसके अलावा यहां निसंतान दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर भी आते हैं। कहा जाता है कोटेश्वर गुफा में जो भी निःसंतान व्यक्ति शिवरात्रि के दिन थाली में दीप जलाकर उसे दोनों हाथ से उठाकर रातभर भगवान शिव की आराधना करेगा उसे संतान सुख जरुर मिलता है।

चामुंडा मंदिर
रुद्रप्रयाग से महज 5.8 km की दूरी पर अलकनंदा और मंदाकिनी की शांत लहरों के बीच स्थित इस मंदिर में मां चामुंडा की पूजा भगवान रुद्र की पत्नी चामुंडा के रुप में की जाती है , इन्हें माता पार्वती का एक रुप भी माना जाता है। मां चामुंडा देवी को बुराई और नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी माना जाता है। मान्यता है मां चामुंडा की पूजा से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।

मन्नतपूर्णा वन देवी
अब आपको उस वन देवी के बारे में बताते हैं जहां के दर्शन मात्र से सारी मन्नतें पूरी हो जाती हैं। रुद्रप्रयाग जिले में नगरासु डांडा खाल से थोड़ी दूरी पर चीड़ के पेड़ों की गोद में बसा है मां मन्नतपूर्णा देवी का मंदिर । मान्यता है की यहां सच्चे मन से आए भक्तों की मन्नतें पूरी होती हैं और इसका सबूत मंदिर के प्रांगण में लहराती चुन्नियां और खनकती चूड़ियां हैं जिन्हें श्रद्धालु भेंट स्वरुप माता को चढ़ाते हैं।
आपको ये जानकर हैरानी होगी इस वनदेवी के मंदिर को एक लड़की के परिजनों बनाया था। कहा जाता है की तकरिबन 16 साल पहले पेड़ से गिरकर इस क्षेत्र की एक बेटी की मौत हो गई थी जिसके बाद उसके परिजनों ने उसकी याद में उसी जगह के पास एक मंदिर बनाया था जिसे आज मन्नतपूर्णा वन देवी के नाम से जाना जाता है और यहां मांगी गई हर मन्नत जरूर पूरी होती है

भुकुंट भैरव
अब आपको केदारनाथ के बेहद खास मंदिर के बारे में बताते हैं जिसकी पूजा के बिना बाबा केदार के धाम के कपाट नहीं खुलतेहै। बाबा केदार के धाम से आधा किमी की दूरी पर स्थित भुकुंट भैरव का मंदिर बेहद खास है। बता दें की भैरव को शिव का प्रिय गण माना जाता है, इनकी पूजा से भूत-प्रेत, ऊपरी बाधाएं और नकारात्मक शक्तियों जैसी परेशानियां दूर रहती हैं।
इन्हें केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है, इसके अलावा यहां इन्हें क्षेत्रपाल के रुप में भी पूजा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी की बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ में भुकुंट भैरव की पूजा का विधान है, भुकुंट भैरव की पूजा होने के बाद ही केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। अब क्योंकि भुकुंट भैरव को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है तो शीतकाल में केदारनाथ की सुरक्षा की जिम्मेदारी भुकुंट भैरव के हाथों में ही होती है।

