क्या आप यकीन कर सकते हैं कि सिर्फ एक महिला की जिद ने उत्तराखंड के 12 हेक्टेयर बंजर जंगल को फिर से हरा-भरा बना दिया? जी हां, चंपावत जिले की रहने वाली भागीरथी देवी ने अपने दम पर वह कर दिखाया, जो सरकारें और बड़ी-बड़ी संस्थाएं भी करने में नाकाम रहीं।
बंजर हुआ मनार गांव
चंपावत जिले का 100 परिवारों और 700 लोगों की आबादी वाला मनार गांव पेड़ों की कटाई और अत्यधिक चराई के चलते उजड़ चुका था। जहां कभी हरियाली थी, वहां सिर्फ सूखी जमीन और बंजर पहाड़ रह गए थे। 2000 तक गांव का 11.6 हेक्टेयर जंगल पूरी तरह खत्म हो गया था। महिलाओं को पानी, चारा और लकड़ी जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए 7-8 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। यही वह समय था, जब मनार गांव की भागीरथी देवी ने जंगलों को फिर से बसाने का संकल्प लिया।
भागीरथी देवी की जिद से शुरू हुई हरियाली की नई कहानी
भागीरथी देवी अपने गांव के उजड़ते जंगलों को देखकर दुखी थीं। उन्होंने गांव की महिलाओं को इकट्ठा किया और जंगल को बचाने की मुहिम छेड़ दी। इसके लिए उन्होंने 2000 में एक वन पंचायत का गठन किया। लेकिन बड़ा सवाल यह था कि इसका नेतृत्व कौन करेगा? जब कोई महिला आगे नहीं आई, तो भागीरथी देवी ने खुद सरपंच बनने की जिम्मेदारी ले ली। भागीरथी देवी के प्रयासों को देखकर गांव के लोग उन्हें ‘वन अम्मा’ कहकर बुलाने लगे। उन्होंने जंगलों की रक्षा के लिए ठोस रणनीति बनाई, जिसमें बाड़बंदी, अवैध कटाई रोकने के लिए निगरानी और जल स्रोतों का संरक्षण शामिल था।
वन पंचायतों का ऐतिहासिक महत्व
उत्तराखंड में वन पंचायतों की अहम भूमिका रही है। इसकी शुरुआत ब्रिटिश राज में हुई थी। 1921 में ब्रिटिश सरकार ने कुमाऊं और गढ़वाल के जंगलों पर सख्त नियंत्रण कर लिया था, जिससे ग्रामीणों को लकड़ी, चारा और पानी जैसी जरूरी चीजें मिलना मुश्किल हो गया। इससे गुस्साए ग्रामीणों ने विरोध करना शुरू कर दिया, यहां तक कि जंगलों में आग लगा दी गई। विरोध को शांत करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1931 में वन पंचायत प्रणाली की स्थापना की। यह वन पंचायतें ग्रामीणों द्वारा संचालित वन प्रबंधन समूह होती हैं, जो जंगलों के संरक्षण और संसाधनों के सही उपयोग को सुनिश्चित करती हैं।
वन अम्मा के अथक प्रयासों का नतीजा
भागीरथी देवी की मेहनत रंग लाई। उन्होंने जंगल की बाड़बंदी करवाई, पेड़ लगाए, जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए गड्ढे खुदवाए और अवैध कटाई रोकने के लिए कई बार रात में छापेमारी की। वन विभाग और कई गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के सहयोग से साइंटिफिक तरीके से जंगल को दोबारा हरा-भरा बनाया गया। आज मनार गांव का जंगल फिर से जीवित हो गया है और हरियाली से भर चुका है। अगर भागीरथी देवी और गांव की महिलाओं ने हार मान ली होती, तो आज भी यह जमीन वीरान पड़ी रहती। लेकिन वन अम्मा की जिद के कारण यह उजड़ा जंगल फिर से हरा-भरा हो गया।
