देश के प्रथम परमवीर चक्र प्राप्त कर्ता ‘मेजर सोमनाथ शर्मा’ की कहानी, प्लास्टर बंधे हाथ से बचाया था कश्मीर

3 नवंबर 1947 का दिन था। पाकिस्तान ने श्रीनगर एयरबेस में कब्जा करने के मकसद से श्रीनगर पर हमला बोल दिया। इस हमले में 700 दुश्मनों के सामने हमारे 50 जवान खड़े थे। संख्या कम थी तो एक मिनट के लिए जवानों का हौसला टूटने सा लगा कि तभी एक हाथ में प्लास्टर लगाए दूसरे में मशीन गन लिए 700 दुश्मनों से अकेले मुकाबला करने का जज्बा लिए एक मेजर इन जवानों का नेतृत्व करने आया। उन्होंने छह घंटों तक 50 जवानों की टुकड़ी के साथ 700 दुश्मनों से सामना किया। मेजर को मर्णोपरांत देश के पहले परमवीर चक्र से सम्मानित भी किया गया। कौन थे वो मेजर, क्या थी उनकी पूरी कहानी जानते हैं उनकी जयंती पर

परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले मेजर के संघर्ष की कहानी

31 जनवरी को कांगड़ा में जन्मे सोमनाथ शर्मा का बचपन से ही सेना से गहरा नाता था। उनके परिवार में फौज में सेवा की एक गौरवशाली परंपरा रही थी। उनके पिता भाई बहन भी भारतीय सेना का हिस्सा रहे थे।

शेरवुड कॉलेज नैनीताल में पढ़े सोमनाथ शर्मा ने रॉयल मिलिट्री कॉलेज ऑफ़ साइंस से उच्च शिक्षा हासिल की। जिसके बाद उन्हें ब्रिटिश-भारतीय सेना की उन्नीसवीं हैदराबाद रेजीमेंट की आठवीं बटालियन में नियुक्त कर दिया गया।

इस बटालियन को बाद में कुमाऊं रेजीमेंट के नाम से जाना जाने लगा। मेजर सोमनाथ शर्मा ने ब्रिटिश-भारतीय सेना में रहते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सेना के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी थी।

इसके कुछ समय बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। इसी के साथ हुआ भारत पाक का विभाजन। आजादी और विभाजन के बाद कई रियासतें खुद को स्वतंत्र रखना चाहती थी। जिनमें से एक थी जम्मू कश्मीर रियासत और साथ ही भारत पाक के अलग होने के बाद लगातार पाक के साथ युद्ध की स्थिति भी बनी हुई थी। इसी बीच भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास एक टेलीग्राम आया। जिसे नार्थ वेर्ट फ्रंटियर प्रोविंस के पूर्व डिप्टी कमिश्र्नर इस्माइल खान ने भेजा था।

इस टेलीग्राम में लिखा हुआ था कि हथियारबंद कबीलाइयों का एक जत्था पाकिस्तान बॉर्डर पार कर आने वाला है। इसके लिए पाकिस्तान सरकार उन्हें ट्रांसपोर्ट मुहैया करा रही है। लेकिन तब कि भारत सरकार भी क्या करती क्योंकि जम्मू कश्मीर रियासत के महाराजा हरी सिंह ने अब तक विलय पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। लेकिन फिर रियासत पर कबीलाइयों के द्वारा आक्रमण से घबराकर 22 अक्तूबर को महाराजा हरी सिंह ने विलय पर पर दस्तखत कर दिए। अब कश्मीर भारत का हिस्सा था और इसकी रक्षा करना भारत सरकार की जिम्मेदारी। जिसके तहत 27 अक्तूबर को भारतीय सेना की पहली टुकड़ी ने कश्मीर की धरती पर कदम रखा और इस लैंडिंग को आज तक भारतीय सेना इंफैन्ट्री दिवस के रूप में सेलिब्रेट करती है।

अब तारीख आती है तीन नवंबर… पाकिस्तान ने श्रीनगर एयरबेस में कब्जा करने के मकसद से श्रीनगर पर हमला कर दिया। इन हमलावरों की संख्या 700 थी और हमारे जवान सिर्फ 50 लेकिन इन जवानों का नेतृत्व एक ऐसा शख्स कर रहा था जिसका नाम आज भी भारत लेता है तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। एक हाथ में प्लास्टर लगाए दूसरे में मशीन गन लिए भारतीय सेना की टुकड़ी में सबसे आगे खड़े थे मेजर सोमनाथ

आपको बता दें की बायां हाथ टूट जाने की वजह से सोमनाथ अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल में ही उन्हें ये खबर मिली कि पाकिस्तानी दुश्मन श्रीनगर एयरफील्ड के पास बडगाम तक पहुंच गए हैं। ये जानने के बाद एक सैनिक आखिर कैसे चैन से बैठ सकता था तो मेजर सोमनाथ ने श्रीनगर जाने की जिद पकड़ ली।

जिसके बाद उन्हें 31 अक्तूबर को श्रीनगर एयरफील्ड पर उतारा गया। तीन नवंबर को बटालियन की ए और डी कम्पनी गश्त पर निकली थी। तभी कबायली हमलावरों ने तीन तरफ से बटालियन को घेर लिया। मेजर सोमनाथ शर्मा की टीम के ऊपर गोले बारूदों कांच और नुकीली कीलों से हमला होने लगा।

मेजर सोमनाथ की टुकड़ी में बस 50 जवान थे और सामने 700 दुश्मन ऐसे में उनके पास सिर्फ हौसला था और सामने खड़ी मौत की आंखों में आंखें डालने का साहस। हाथ में प्लास्टर होने के बावजूद मेजर सोमनाथ ने खुद सैनिकों को भाग-भाग के हथियार और गोला बारूद दे रहे थे।इसके साथ ही उन्होंने खुद एक हाथ में लाईट मशीन गन थाम रखी थी। अब शुरू हुई हमलावरों और सैनिकों के बीच बयानक जंग।

धीरे-धीरे उनके सैनिक कम होते जा रहे थे तो सेना से मदद मांगने के लिए उन्होंने सारी स्थिति की जानकारी वायरलेस के माध्यम से अपने ब्रिगेडियर कमांडर को दी पर कौन जानता था की ये मेजर सोमनाथ का आखिरी वायरलेस मेसेज होगा। मेजर सोमनाथ ने कहा दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है। हमारी संख्या काफी कम है। हम भयानक हमले की जद में हैं। लेकिन हमने एक इंच जमीन नहीं छोड़ी है हम अपने आखिरी सैनिक और आखिरी सांस तक लड़ेंगे।

इसी बीच दुश्मनों की तरफ से चलाया गया एक मोटार्र सेल उनके करीब आकर गिरा। जब तक मेजर शर्मा कुछ समझ पाते एक तेज धमाका हुआ और मेजर शर्मा के शरीर के चीथड़े उड़ गए। उनके शरीर के अवशेष तीन दिन बाद मिले। लेकिन अपना वादा निभाते हुए मेजर सोमनाथ ने करीब छह घंटे तक कबीलाईयों से मुकाबला किया। उनकी टुकड़ी के 20 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके थे। लेकिन फिर भी उन्होंने 200 कबिलाइयों को मौत के घाट उतार दिया था। बताया जाता है की उनकी यूनिफार्म की जेब में गीत के कुछ पन्ने भी थे। जिन्हें वो हमेशा अपने साथ रखते थे। इस जंग में वीरता दिखाने के लिए मेजर शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।