उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू होने के बाद, इसके तहत विभिन्न प्रकार के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बीच, यूसीसी के ड्राफ्ट और नियमों को तैयार करने वाली कमेटी की सदस्य प्रो. सुरेखा डंगवाल ने लिव-इन पंजीकरण को लेकर बड़ा बयान दिया है।
रजिस्ट्रार स्तर पर ही होगी दस्तावेजों की जांच
प्रो. सुरेखा डंगवाल ने स्पष्ट किया कि लिव-इन पंजीकरण के लिए जमा किए गए दस्तावेजों की जांच केवल रजिस्ट्रार के स्तर पर ही होगी। इसमें किसी अन्य एजेंसी की कोई भूमिका नहीं होगी, जिससे प्रक्रिया सरल और सुरक्षित बनी रहेगी।
ये हैं UCC के नियम
- यूसीसी नियमों के तहत, लिव-इन आवेदन मिलने पर रजिस्ट्रार केवल जिला पुलिस अधीक्षक (SP) के माध्यम से संबंधित थाने को इसकी सूचना देगा।
- यह सूचना सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से साझा की जाएगी।
- थाना प्रभारी या अन्य किसी अधिकारी को सीधे आवेदन की जानकारी तक पहुंच नहीं होगी।
- पूरी प्रक्रिया जिला पुलिस अधीक्षक की निगरानी में रहेगी, जिससे गोपनीयता बनी रहे।
गोपनीयता होगी बरकरार
नियमों के अनुसार, रजिस्ट्रार को स्पष्ट रूप से उल्लेख करना होगा कि यह सूचना केवल अभिलेखीय प्रयोजन के लिए है। इसका अर्थ यह है कि पुलिस को यह जानकारी तो दी जाएगी, लेकिन इसका इस्तेमाल किसी अन्य जांच या हस्तक्षेप के लिए नहीं किया जा सकेगा।
लिव-इन से विवाह संस्था होगी मजबूत
प्रो. डंगवाल ने यह भी कहा कि यूसीसी के तहत लिव-इन से जन्म लेने वाले बच्चों को जैविक संतान के समान अधिकार दिए गए हैं। इससे विवाह की संस्था को मजबूती मिलेगी, क्योंकि समाज की समृद्धि परिवार व्यवस्था पर आधारित रही है।
क्या है इसका प्रभाव?
लिव-इन जोड़ों को अब कानूनी पहचान और सुरक्षा मिलेगी।
गोपनीयता बनी रहने से समाज में लिव-इन संबंधों को लेकर दखलंदाजी कम होगी।
बच्चों के अधिकार सुनिश्चित होने से भविष्य में संपत्ति और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे सुलझेंगे।
उत्तराखंड बना पहला राज्य
उत्तराखंड पहला राज्य है जिसने समान नागरिक संहिता को लागू कर लिव-इन संबंधों की कानूनी रूप से मान्यता सुनिश्चित की है। इस नई व्यवस्था के तहत न केवल विवाह बल्कि अन्य पारिवारिक और व्यक्तिगत कानूनों में भी व्यापक बदलाव लाए गए हैं।
