आजकल आप अपने बड़े बुजूर्गों को ये कहते जरूर सुनते होंगे की जब हम छोटे थे तब इतनी गर्मी नहीं पड़ती थी। वो आपको अपने गर्मियों के कई किस्से भी सुनाते होंगे की कैसे वो गर्मियों में बाहर खेलने जाया करते थे। कैसे नदी में नहाते थे। लेकिन क्या आपने सोचा है की फिर अचानक ऐसा क्या हुआ की उत्तराखंड जैसे ठंडे राज्य में भी गर्मी ने कहर बरसाना शुरु कर दिया। आखिर क्यों 70 सालों में पहली बार पानी के श्रोत सूखने लगे, क्यों ग्लेशियर्स अब इतनी तेजी से पिघलने लगे हैं। क्यों गर्मी से पिछले 122 साल का रिकार्ड तक टूट गया।
गर्मी ने तोड़ा बीते 11 सालों का रिकार्ड
उत्तराखंड जो अपने खूबसूरत हिल स्टेशनों और ठंडी वादियों के लिए जाना जाता है, आजकल गर्मी की भयानक मार झेल रहा है। अगर हम बात करें हल्द्वानी की तो यहां गर्मी ने बीते 11 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है। यहां तक की हल्द्वानी जैसे शहर का तापमान अजमेर से भी ऊपर पहुंच गया है। उत्तरकाशी में तो बीते 70 सालों में पहली बार प्राकृतिक जलश्रोत तक सूखने लगे है । मसूरी और नैनीताल जैसे प्रसिद्ध हिल स्टेशन, जो सामान्यतः गर्मियों में ठंडक देने के लिए मशहूर हैं, अब गर्मी से बचने के लिए एसी और कूलर का सहारा ले रहे हैं।
औली मुनश्यारी जैसे इलाके जहां अच्छी खासी बर्फी गिरती है इस साल यहां भी पंखे की जरूरत पड़ने लगी है। उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में तो तापमान 40 से 46 डिग्री तक पहुंच गया है। यही नहीं ये गर्मी ग्लेशियरस पर भी काफी इफेक्ट डाल रही है जिस कारण ग्लेशियर्स भी तेजी से पिघलने लगे हैं और नदियों में पानी बढ़ता जा रहा है। मौसम वैज्ञानिकों को बढ़ती गर्मी के चलते कई जिलों में लू का रेड अलर्ट जारी करना पड़ रहा है। जानतें हैं बीतेचार सालों में जून कितना गर्म रहा।
चार सालों में जून का तापमान
साल 2023 में 42.5
साल 2022 में 44
साल 2021 में 39.8
साल 2020 में 44.9
उत्तराखंड में क्यों हो रही भीषण गर्मी
लेकिन क्या आप जानते हैं इस सब के पीछे वजह क्या है। वैज्ञानिकों की माने तो ग्लोबल क्लाइमेट चेंज के चलते उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में भी प्रचंड गर्मी पड़ रही है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते सिर्फ प्रदेश या देश ही नहीं बल्कि सारी दुनिया परेशान है। इसी के साथ अलनिनो को भी इसका कारण बताया जा रहा है। दरअसल अल नीनो और ला नीना मौसमी घटनाक्रम है जो प्रशांत महासागर की सतह के टेंप्रेचर में होने वाले बदलावों से जुड़ी हुई है। जहां एक तरफ अलनीनो तापमान के इजाफे से जुड़ा है वहीं ला नीना तापमान में होने वाली गिरावट को दर्शाता है।
इस क्लाइमेट चेंज से आपदा, लैंडस्लाइड, कृषि, पशुओं समेत बागवानी को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है।
इस तपा देने वाली गर्मी से निजात पाने के लिए प्री मानसून की बारिश बहुत जरूरी है लेकिन इन दो महिनों में एक दो दिन छोड़कर अब तक बरसात ना होने से रिकॉर्डतोड़ गर्मी दर्ज की गई है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मानें तो 12 से 18 जून के बीच मानसून में कोई प्रगति नहीं हुई है, जिसके चलते जून के महीने में भारत में सामान्य से 20 फीसदी कम बारिश हुई है। हालांकि मौसम विभाग का कहना है कि अगले तीन से चार दिनों में भारत के कुछ हिस्सों में मानसून पहुंच सकता है। वहीं प्रदेश में भी इस लंबे इतजार के बाद मौसम विज्ञान केंद्र ने बारिश और तूफान का ऑरेंज अलर्ट जारी किया।
