उत्तराखंड की धरती पर यूं तो कई प्रेम कहानियों हुई, लेकिन एक कहानी ऐसी भी है जिसने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ी. ये कहानी है विनोद कापड़ी की फिल्म पायर की, जो इस साल अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में चुनी जाने वाली अकेली भारतीय फिल्म है.
पायर उत्तराखंड के मुनस्यारी क्षेत्र के एक बुजुर्ग दंपति की संघर्ष और प्रेम की अनूठी दास्तान है. इसके मुख्य किरदार पदम सिंह और हीरा देवी हैं. कहानी की प्रेरणा निर्माता विनोद कापड़ी को 2017 में मुनस्यारी की यात्रा के दौरान मिली. उन्होंने बताया कि वहां के कठिन हालात, जहां सड़क, बिजली और अस्पताल तक नहीं हैं, इन सब ने उन्हें झकझोर दिया. उन्होंने महसूस किया कि कैसे यहां रहने वाले बुजुर्गों का जीवन एक-दूसरे के सहारे चल रहा है. इस इलाके से हो रहे पलायन ने गांवों को वीरान कर दिया है. इसी अनुभव ने उन्हें ये कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया. विनोद कापड़ी का कहना है की, “ये फिल्म पहाड़ों का दुनिया के लिए एक प्रेम पत्र है. ये सिर्फ संघर्ष की कहानी नहीं, बल्कि 80 साल के बुजुर्ग जोड़े की खूबसूरत प्रेम कहानी भी है.
‘पायर’ का मतलब चिता होता है. विनोद कापड़ी के मुताबिक, ये फिल्म उनके अपने पहाड़ों और जड़ों से दूर हो जाने का पश्चाताप भी है. एक कहानीकार और कलाकार के रूप में ये उनकी भावनात्मक जिम्मेदारी थी कि वे पहाड़ों की कहानी को दुनिया तक पहुंचाएं. शुरुआत में, निर्माता वास्तविक बुजुर्ग दंपति के साथ यह फिल्म बनाना चाहते थे. लेकिन वो दंपति कैमरे के सामने सहज नहीं थे जिसके बाद उन्होंने नसीरुद्दीन शाह और रत्ना पाठक से संपर्क किया, लेकिन उनकी सलाह पर विनोद ने कहानी के मुताबिक पहाड़ी चेहरों की तलाश शुरू कर दी. काफी ऑडिशन के बाद, पदम सिंह और हीरा देवी को चुना गया. हीरा देवी विधवा हैं और जंगल में लकड़ियां और घास काटती हैं, जबकि पदम सिंह सेना से सेवानिवृत्त हैं और खेती-बाड़ी करते हैं. पायर फिल्म ने ना सिर्फ भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को भी काफी प्रभावित किया. पायर सिर्फ विनोद कापड़ी का पहाड़ों को दिया गया प्रेम पत्र नहीं, बल्कि हर उस इंसान की आवाज़ है, जिसने अपनी जड़ों को कभी नहीं भुलाया.
