उत्तराखंड का लोकपर्व घी संक्रान्ति आज, सीएम ने दी प्रदेशवासियों को बधाई, जानें महत्व

उत्तराखंड के कई पारंपरिक त्यौहार हैं. जिनमे से एक है घी त्यार..जी हां आज उत्तराखंड का त्यौहार घी त्यार है. प्रकृति और किसानों का उत्तराखंड के लोक जीवन में अत्यधिक महत्व रहा है. सौर मासीय पंचांग के अनुसार सूर्य एक राशि में संचरण करते हुए जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को घी संक्रान्ति की बधाई दी है.

सीएम धामी ने दी घी संक्रान्ति की बधाई

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को घी संक्रान्ति की बधाई दी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड अपनी संस्कृति और लोकपर्व के लिए जाना जाता है. हमारे पारम्परिक लोकपर्व सांस्कृतिक विरासत के मजबूत आधार होते हैं. घी संक्रांति राज्य का प्रमुख लोकपर्व होने के साथ ही किसानों तथा अच्छे स्वास्थ्य की कामना से जुड़ा पर्व भी है. अपने इन पर्वों की परम्परा से भावी पीढ़ी को जागरूक करना भी हम सबकी जिम्मेदारी है.

क्यों मनाया जाता है घी त्यार या ओलगिया ?

कहा जाता है की दशकों पहले जब उत्तराखंड में चंद राजाओं का शासन हुआ करता था, तब इस त्यौहार को मनाने की शुरूआत हुई. उस समय शिल्पी लोग अपने हाथों से बनी कलात्मक चीजें, गांव के काश्तकार अपने खेत में उगे फल, साग सब्जी, दै-धिनाई जो भी उनके घर में होता उसे राजमहल में लेकर जाते थे. इस दिन राजा- महाराजा इन शिल्पियों और काश्तकारों को एक खास भेंट ओगल देते थे. उस जमाने में इसे ओगल प्रथा कहा जाता था। फिर समय बदला और प्रथा का रुप भी बदल गया। अब लोग घी त्यार के दिन अपने ग्राम देवता के बाद पुरोहित, रिश्तेदार या परिचित लोगों को साग, सब्जी, दूध-धिनाई भेंट में देकर ओगल की रस्म को पूरा करते हैं। इसके साथ ही घी जरूर खाते हैं.

घी त्यौहार मनाने के पीछे की मान्यता क्या है?

घी त्यार के दिन घर के सारे सदस्यों के सिरों पर ताजा घी लगाना जरूरी होता है.लोकमान्यता है कि जो ऐसा नहीं करता उसे अगले जन्म में गनेल यानि की घोंघा बनना पड़ता है. घी खाने के साथ ही इसे पैरों के तलवे पर भी लगाया जाता है। इस दिन बेडू की रोटी बनाई जाती है जिसे घी के साथ खाया जाता है। इसके साथ ही घी में कई तरह के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं.