भू कानून पर सीएम धामी के ऐलान के बाद सामने आया प्रदर्शनकारियों का रिएक्शन, कर दी ये मांग

उत्तराखंड की भू कानून संघर्ष समिति ने मंगलवार को एक प्रेस वार्ता आयोजित की, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री धामी के भू कानून संबंधी ऐलानों पर अपने विचार साझा किए। समिति के सदस्यों ने कहा कि सरकार को किसी भी भू कानून का मसौदा जनता के बीच सार्वजनिक करना चाहिए, इससे पहले कि इसे विधानसभा में पेश किया जाए।

संघर्ष समिति का कहना है कि, “2018 में जो कानून संशोधन हुए, वह दिल्ली में ड्राफ्ट किए गए थे। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सरकार जो भी कानून लाए, उसे पहले जनता के सामने रखा जाए।” समिति ने यह भी बताया कि उत्तराखंड में 30 साल से निवास कर रहे व्यक्तियों को भूमि खरीदने के लिए सत्यापन के बाद ही अनुमति मिलनी चाहिए। इसके अलावा, 2018 से नगरीकरण की प्रक्रिया के तहत 385 गांवों को नगर निगम में शामिल किया गया है, जिसमें देहरादून के 85 गांव भी शामिल हैं।

समिति ने जोर दिया कि “नगर और गांव के लिए एक समान कानून होना चाहिए, और पूरे प्रदेश के लिए एक एकीकृत कानून की आवश्यकता है।” इसके साथ ही, उन्होंने सरकार से भूमि बंदोबस्त के कार्य को तत्काल प्राथमिकता देने की अपील की। संघर्ष समिति ने बताया कि वे आने वाले समय में केदारनाथ में एक विशाल रैली का आयोजन करने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ ही हरिद्वार, पिथौरागढ़ और पौड़ी में भी रैलियों का आयोजन किया जाएगा।

समिति के सदस्यों ने कहा कि “उत्तराखंड की हर सरकार जमीनों की खुर्दबुर्द करने में शामिल रही है। इन्वेस्टर समिट के नाम पर भी जमीनों की बेजा बिक्री हुई है, और यह केवल हिमालयी राज्यों में ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड में सबसे अधिक हो रहा है।” समिति ने स्पष्ट किया कि भू कानून के साथ-साथ 1950 के मूल निवास अधिकारों पर भी सरकार को काम करना चाहिए l