रुड़की स्थित पाडली गुज्जर नगर पंचायत से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने स्थानीय राजनीति में हलचल मचा दी है। कांग्रेस पार्टी के टिकट पर नगर पंचायत चेयरमैन बनी शहरून नाम की महिला इन दिनों चर्चा में हैं. वजह है उनकी पहचान तक का रहस्य। नगर पंचायत के निर्वाचित सभासदों से लेकर अधिशासी अधिकारी तक, कोई भी यह साफ तौर पर नहीं कह पा रहा कि चेयरमैन कौन हैं, क्योंकि वह हमेशा बुर्के में रहती हैं, और चेहरा सार्वजनिक नहीं करतीं।
चेयरमैन को आज तक देखा ही नहीं : सभासद
नगर पंचायत वार्ड नंबर 1 से निर्वाचित सभासद आकाश का आरोप है कि चेयरमैन के रूप में जिस महिला ने चुनाव जीता, उन्हें आज तक देखा तक नहीं गया। आकाश का कहना है, छह महीने हो गए हैं, लेकिन हमें आज तक यह नहीं पता कि चेयरमैन कौन हैं। बुर्का पहनकर जो आती हैं, क्या वही चेयरमैन हैं या कोई और — यह भी नहीं पता चलता।
अधिकारी सिग्नेचर से करते हैं पहचान
इस मामले में चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारी राहुल उनियाल ने भी स्पष्ट किया कि वह चेयरमैन की पहचान सिर्फ सिग्नेचर से करते हैं। उन्होंने कहा, बुर्का उनका धार्मिक पहनावा है, इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। हम चेयरमैन को उनके हस्ताक्षर से ही पहचानते हैं। शुक्रवार को नगर पंचायत कार्यालय में आयोजित बोर्ड बैठक में वार्ड नंबर 1 के सभासद आकाश सहित दो अन्य सदस्यों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया। इनका आरोप था कि न तो एजेंडा बताया गया, न ही पिछली बैठक के विकास प्रस्तावों पर कोई काम हुआ है।
सभी काम प्रतिनिधि तौकीर करता है
सभासद आकाश का कहना है कि चेयरमैन के सभी काम चेयरमैन प्रतिनिधि तौकीर के माध्यम से होते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि तौकीर नगर पंचायत के सभी कार्यों में मनमानी करता है और चुनी हुई चेयरमैन केवल नाम भर की हैं। इस बैठक में झबरेड़ा विधायक व कांग्रेस नेता वीरेंद्र जाती भी मौजूद रहे। जब उनसे चेयरमैन की पहचान को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि बुर्का उनका व्यक्तिगत लिबास है, और पहचान सिग्नेचर से करना ही ठीक है।
क्या वाकई चेयरमैन सशक्त हैं या पर्दे में सत्ता?
यह मामला न सिर्फ स्थानीय प्रशासन की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के दावों की भी पोल खोलता है। चेयरमैन के रूप में चुनी गई महिला की पहचान तक अस्पष्ट हो, और कार्य प्रतिनिधि के जरिए हो रहे हों, तो सवाल उठना लाज़िमी है कि यह प्रतिनिधित्व महिलाओं का है या सिर्फ चेहरा बदलकर सत्ता किसी और के हाथ में?