उत्तराखंड के कंठ से कुछ ऐसे सुमधुर गीत निकले हैं जिन्होंने देश विदेशों में उत्तराखंड को पहचान दिलाई है. जिनके बोलों में उत्तराखंड की धरती की खूबसूरती यहां का मर्म यहां का दुख साफ साफ झलकता है… चलिए आपको बताते हैं उत्तराखंड़ी टॉप 5 गानों की जिन्होंने अपनी बोल और धुनों से लोगों का दिल जीत लिया.
बेड़ू पाको बारोमासा
इन्हीं गानों में से एक है बेड़ू पाको बारोमासा. ये गाना तो आप सब ही ने सुना होगा क्या देश क्या विदेश क्या…… कहीं भी जब उत्तराखंडी गानों की बात हो तो सबसे पहले ये गाना हर किसी की जुबान पर होता है…. बेड़ूपाको गाने के बोल तो हम सब जानते हैं आइए आज इसका इतिहास भी जान लेते हैं
बेडू़ पाको बारोमासा गीत अल्मोड़ा में स्व. बृजेन्द्र लाल शाह द्वारा लिखा गया है. इस गाने के बोलों को संगीत स्व. मोहन उप्रेती और बृजमोहन शाह ने दिया था….बता दें की एक बार लेखक विजेंद्र लाल शाह अल्मोड़ा में जाखनदेवी के पास एक चाय की दुकान पर ये गीत गुन-गुना रहे थ. तभी इस गीत के बोल मोहन उप्रेती के कानों में पड़े जिसके बाद उन्होंने विजेंद्र लाल शाह से इसे पूरा सुनाने के लिए कहा जब मोहन उप्रेती ने ये गीत पूरा सुना तो वो इसके धुन दिए बिना रह नहीं पाए और फिर ये गीत सारे उत्तराखंड की पहचान बन गया ……
यहां गाया गया था पहली बार गीत
बेड़ूपाको बारोमासा गीत को पहली बार 1952 में राजकीय इंटर कालेज नैनीताल में गाया गया था….. जिसके बाद दिल्ली में 1955 में जब रूस के दो शीर्ष नेता ख्रुश्चेव और बुल्गानिन भारत आए तो इस अंतर्राष्ट्रीय सभा में इसकी पहली रिकॉर्डिंग सम्मान में बजाई गई. ऐसा कहा जाता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को ये गीत बेहद ही पसंद आया था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस गीत को भारत के अन्य प्रतिभागियों के बीच सर्वश्रेष्ठ लोकगीत के रूप में चुना……. जिस वजह से उन्होंने मोहन उप्रेती को ‘बेडू पाको बॉय‘ का नाम भी दिया था।
मेरि पितरो की बसायी टिहरी
उत्तराखंड में कई गाने ऐसे भी बने जिन्होंने यहां की व्यथा को बताया….अपने पुरखों से बिछड़ने का दर्द अपने गीतों में दिखाया….. इन्हीं में से एक गीत है याद आली टिहरी फिल्म का मेरि पितरो की बसायी टिहरी पाणि जुग्ता ह्वै, जिसे रोहित चौहान ने गाया है. ये गाना टिहरी के दर्द और उसके त्याग की कहानी बयां करता है. जब एक जीवंत शहर मनुष्य की बढती जरूरतों की भेंट चढ गया. ये गाना लोगों के उस दुख को बताता है…. जब शहरों के घरों को रोशन करने के लिए टिहरी को गहरे पानी के अंधेरे में धकेल दिया गया. तब टिहरी में रहने वाले हजारों परिवारों के दिल में जो विस्थापन की टीस उठी थी वो कैसी थी.
Tv स्क्रीन पर पहली बार गाया गया था गीत
टिहरी के डूबने पर कई गाने कई कविताएं लिखी गई. रोहित चौहान का गाया हुआ मेरि पितरो की बसायी टिहरी गाना अपनी पित्रों की धरती से दूर होने के दर्द को साफ साफ जाहिर करता है. आपको ये जानकर अचरज होगा की ये वो पहला गाना था जिसे टीवी की स्क्रिन पर पहली बार गाया गया था.
घुघुति घुरों लागी म्यार मैत की
उत्तराखंड में बहुओं और बेटियों की व्यथा के ऊपर भी कई गाने बने हैं जिन्हें सुनते ही आंखें आंसुओं से भर जाती हैं. यहां महिलाओं को पहाड़ों की रीढ़ माना जाता है. महिलाओं के बिना पहाड़ों को सोच पाना नामुमकिन सा है. वो घर, जंगल, खेत, खलिहान, गाय, बछिया सब संभालती है और इस सब के बीच वो प्रकृति से बात करना भी सिख जाती है और अपना दुख दर्द यहां के पेड़ पौधों और पक्षियों से बांटती है. उत्तराखंड में इसी को दर्शाते हुए नरेद्र सिंह नेगी ने एक गाना लिखा जिसे आवाज मिना राणा ने दी. इस गाने का नाम है घुघुति घुरों लागी म्यार मैत की.
तीन पीढ़ियों को दर्शाता है गीत
इस गीत में गढ़वाल में रहने वाली बहुओं की व्यथा देखने को मिलती है. साथ ही इसके बोलों ने उत्तराखंडीयों के दिलों पर एक गहरी छाप भी छोड़ी है. ये गीत अपने बोलों में पहाड़ों की तीन पिडियों को दर्शाता है. एक वो पीढ़ी जो गांव में रहकर आभावों का जीवन जी रही थी. दूसरी वो जो गांव छोड़कर शहरों में रह रही थी और तीसरी पीढ़ी वो जो अपने गांव के अतीत को समझना चाहती थी.
इस गीत में पहाड़ों की एक चिड़िया घुघुती का जिक्र काफी देखने को मिलता है. आपको बता दें घुघुती एक पहाड़ी चिड़िया है जिसे आप हिमालय की आवाज भी कहेंगे तो कोई अतिशियोक्ती नहीं होगी. ये चिड़िया यहां के लोगों की जिंदगी में इस हद तक शामिल है की आपको यहां के साहित्य, गीत, संगीत और हर दूसरी कविताओं में इसका जिक्र मिलेगा. घुघुती की आवाज पहाड़ों के मर्म को झलकाती है. घुघुती अपनी आवाज से हर किसी को उसके अपनों की याद दिलाती है. पहाडों की बहु-बेटीयां इसी घुघुती से अपने सुख- दुख को साझा करती है और घुघुती के बहाने अपने घर को याद करती हैं.
छाना बिलौरी का जिक्र
अब जहां पहाड़ों की बेटीयों की व्यथा की बात की जाए और कुमाऊं के छाना बिलौरी का जिक्र ना हो ऐसा मुमकीन ही नहीं है. गोपाल बाबू गोस्वामी द्वारा लिखा ये गाना पहाड़ों में बेटीयों के दर्द को दिखाता है. इस गीत को आवाज बीना तिवारी ने दी. इस गीत की पंक्तियां पहाड़ों के कष्ट भरे जीवन को दर्शाती हैं. जिसमें एक लड़की अपने पिता से कहती है कि मुझे छाना बिलौरी में मत ब्याहना वहां काफी कष्टों भरा जीवन है.
इस गीत के बोलों में पहाड़ों की महिलाओं की व्यथा, संर्घष, संवेदनाएं और दर्द झलकता है. आज भी इस गीत को सुनकर आँखों में आंसू आ जाते हैं कि पहाड़ों का जीवन कितना कष्टों से भरा है अगर आपको कभी इस गीत को सुनते हुए ये लगे की ये पहाडों के गांवो के पिछड़ेपन को बया करता है तो आप गलत हो सकते हैं क्योंकि ये यहां के गांवों का पिछड़ापन नहीं बल्कि यहां की बहु बेटीयों का मर्म दिखाता है.
हरिया वर्दी मा
इसके अलावा भी पहाड़ों में कई गाने सेना पर भी बने हैं की किस तरह सेना में लोग रहते हैं, उन्हें घर की कितनी याद आती है छोटी सी उम्र में उन्हें क्या क्या कष्ट सहने पड़ते हैं…. इन गानों में से एक है हरिया वर्दी मा. जिसमें एक फौजी लड़का अपनी मां को फौज की नौकरी में होने वाले कष्टों के बारे में बताता है. आपको बता दें कि उत्तराखंड़ी युवाओं को अपनी देशभक्ति के लिए जाना जाता है. जिसका जिक्र आपको यहां के लोकगीतों, गाथाओं और किस्सों में सुनने मिल जाएगा. यहां के वीरों के किस्से देश विदेशों में भी सुनाए जाते हैं. लेकिन इस दौरान उन्हें अपने घरों से दूर रहना पड़ता है कड़कड़ाती ठंड में डयूटी करनी पड़ती है ना उनके खाने का समय होता है ना सोने का ऐसे कई तरह के दर्द इस गाने के बोलों में पिरोए गए हैं.
वो कहते हैं ना की जहां शब्द विफल हो जाते हैं वहां संगीत बोलता है. ऐसे ही उत्तराखंड़ की कई कहानीयां कई दर्द जो शायद साहित्यकार अपनी किताबों के पन्नों में नहीं उतार पाए. उस सब को यहां के गीतकारों ने संगीत के बोलों में पिरो दिया गया और आज इन्हीं गीतों के माध्यम से लोग हमारी संस्कृति यहां की खूबसूरती और यहां के मर्म से से रुबरु हो पाते हैं.
